From the desk of Sanjay Sharma
Here is the collection of Q&A, that followers have asked Gurusshri.
गुरुश्री राधा और मीरा दोनों ने कृष्ण को पाया... इन दोनों ने भगवान को कैसे पाया? इस भक्ति में जो कॉमन फैक्टर (common factor) है , वह दीवानापन है .... दोनों के बारे में सबको पता है , कि दोनों ने भगवान को पाया ... लेकिन पाया तो पाया कैसे | दीवानापन जो है... दीवाना पागलपन को नहीं कहते ....दीवाना कहते हैं एक्सट्रीम (extreme) को.... किसी भी चाहत के लिए एक्सट्रीम तक चले जाना.... उसको दीवानापन कहते हैं | और यह दीवानापन बहुत ऊंची तपस्या है ....यह तपस्या कोई आसान नहीं है.... इसमें अंदर अभिमान , अहंकार ,स्वार्थ, ईर्ष्या ...इन सब चीजों को अपने से जुदा कर दिया जाता है | इन सबसे दूर हो जाओगे तो तुम प्यार और समर्पण की भावना के अंदर प्रवेश कर जाओगे | यह दीवानापन किसी भी चीज से हो सकता है ....जरूरी नहीं कि कोई व्यक्ति विशेष ....यह कुदरत की बनाई हुई किसी वस्तु से भी हो सकता है.... इसके अंदर जितने गहरे उतरते जाओगे उतना ही आनंद पाते जाओगे ...उतना ही सुकून पाते जाओगे... सुकून में जाने के बाद कोई भी काम, कोई भी अभिलाषा अधूरी नहीं रहती... दुनियादारी में रहते हुए, गृहस्थ में रहते हुए, समाज में रहते हुए इस सुकून को प्राप्त करो यह एक तरीके से आपके पास अतिरिक्त ऊर्जा (extra energy) हो जाएगी ...जीने की कला और पाने की कला | एक आदमी पैदल चल रहा होता है, पैदल वह रास्ते को बहुत लंबे समय में पूरा करता है .... जब उसके पास गाड़ी आ जाती है, तो उसी दूरी को वह जल्दी पार कर लेता है | यह विद्या जो है ...यह शक्ति जो है ...इस शक्ति से आप सब कुछ जल्दी पा लेंगे ...फिल्टर्ड (filtered) पा लेंगे और उसमें यह सोचने की भी जरूरत नहीं पड़ेगी कि यह सही है या गलत है | किसी बंधन में मत पड़ो... यह सब बंधनों को तोड़ देती है, इसमें सीधा कनेक्शन (connection) आत्मा और परमात्मा का होता है... इस सुकून को प्राप्त करो |
गुरुश्री सुकून में कैसे जाएं ? गुरुश्री सुकून कैसे प्राप्त करें? सुकून में जाना बहुत आसान है | सबसे पहले रिलैक्स ( Relax) .... अपने ध्यान को केंद्रित करो... किसी में भी .... उसके लिए कोई स्वरूप अगर होता है, तो सबसे आसान है... वो स्वरूप किसी भगवान का.... किसी इंसान का ...किसी चाहने वाले का.... या प्रकृति से संबंधित किसी भी चीज का | उसका प्रतिबिंब अपने सामने लाओ | सबसे पहली शर्त यह है उस चीज से प्रेम होना चाहिए | किसी को किसी की आंखों से प्रेम होता है, किसी को किसी की बातों से प्रेम होता है, किसी को किसी की हंसी से प्रेम होता है, किसी को किसी की अदाओं से प्रेम होता है... किसी भी चीज का.... किसी एक पॉइंट (point) पर इतनी जबरदस्त अट्रैक्शन (attraction) होना, कि वह लॉक (lock) हो जाए मन में.... कि उससे सुंदर चीज मेरे पास नहीं है | उस प्रतिबिंब में जाना ....उस प्रतिबिंब को आंख बंद करके अपनी आंखों के सामने ले आना....सुनने में अजीब लग रहा होगा "आंखें बंद करके आंखों के सामने" | जब तक वह आंखों से दिख रहा है, तो उसके आजू-बाजू और भी बहुत सारी चीजें दिख रही है ....लेकिन जो हमारा टारगेट (target) है जैसे मैंने बोला किसी की आंखें हो सकती है... भगवान की हंसी हो सकती है.... उस पॉइंट (point) को अपने जहन में ...बंद आंखों से अपनी आंखों के सामने लाना .... आंखें बंद ही रहेंगी.....धीरे-धीरे उसी चीज से चाहत बढ़ाओ ....बहुत चाहत बढ़ाओ ...... उसी के ध्यान में जाते जाओ ...फिर कुछ भी हो रहा हो , हर तरफ से ध्यान हट जाएगा | यह ऐसे क्षण होते हैं ...उस समय पर अगर कोई संगीत भी बज रहा है तो आवाज नहीं आएगी.... किसी भी प्रकार की कोई disturbance रुकावट हो रही हो , वह नजर नहीं आएगी... कुछ नजर नहीं आएगा सिर्फ इसके अलावा | उसका ध्यान करते करते उसको अपनी आत्मा के अंदर बसा लो ....दिल के उस कोने में जिसे मन और आत्मा बोलते हैं... जैसे आप सामने की तरफ उसको देख रहे हो ...आंखें बंद ही हैं | आंखें पलटकर अंदर झांकने लगेंगी ....फिर वहीं पर अटक जाएंगी | वह क्षण जो होते हैं, वह चेतन से अचेतन की तरफ बढ़ाते हैं और उसमें इतना रोमांच है... आनंद है ...इतना आनंद है ....उससे ऊपर का आनंद चाहिए ही नहीं होता .... उन क्षणों में मानव एकदम सुन्न पड़ जाता है और उसकी कोशिश यह होती है कि इस आनंद से कभी भी उसकी तंद्रा टूटे नहीं | इस आनंद में जितना भी संग मिले उसे ...5 मिनट ....10 मिनट... यह बढ़ता चला जाएगा... आधा घंटा.... एक घंटा... सारी रात... सारा समय और सारी जिंदगी भी गुजर सकती है| उस आनंद से निकलने का मन नहीं करेगा | अब इसके अगर और बड़े स्वरूप में जाओगे तो यह सुकून किसी भी चीज में लिया जा सकता है ...खाने में ...किसी भी खाने की चीज का जो आपको बहुत अच्छी लगती हो | इसके पीछे सिर्फ एक कारण होना चाहिए ...कि मनुष्य को उससे सुंदर कुछ नहीं लगता | यह हर एक का अपना-अपना होता है ...किसी को कोई चीज अच्छी लगती है... किसी को दूसरी चीज अच्छी लगती है... यह सब का अलग अलग है ....इसमें कोई बंधन नहीं ...कोई लिमिट (limit) नहीं ... .वह चीज मन को भानी चाहिए ... बहुत अच्छी लगनी चाहिए | मेरे पास तो इस तरह की सैकड़ों चीजें हैं.... किसी भी चीज को प्रतिबिंब में लेकर अपने मन के अंदर उतार सकते हो ...फिर इसमें से निकलने का मन नहीं करेगा | पहले पहले थोड़ा समय लगेगा , मगर मुश्किल नहीं है | सबसे सुंदर है ...easy रह कर करोगे, रिलैक्स (relax) रह कर के ...तो सबसे आसान है...आनंद है... Let's try....
गुरुदेव क्या जीवन में गुरु के संग जुड़ने से समस्त पीड़ाओं और दुखों का अंत हो जाता है? सभी प्राणियों को जीवन में सुख और दुख अपने कर्मों के अनुसार भोगने पड़ते हैं | गुरु आपकी सभी तकलीफों का अंत कर सकते हैं पर अपने कर्मों के प्रारब्ध आपको फिर भी पूरे करने होंगे | अगर इस जन्म में पूरे नहीं किए , तो अगले जन्म में फिर उन तकलीफों से गुजरना पड़ेगा | गुरु के संग जुड़ने से मानव में उन तकलीफों से लड़ने की इच्छाशक्ति और साहस पैदा होता है , जिससे कि वह अपने कर्मों का फल पूरा करके एक सुखद जीवन जी सकता है | हमारे कर्म ही सुख दुख का कारण होते हैं इसीलिए जैसी भी परिस्थिति आए , उसी में संतोष मनाना चाहिए | रास्ता अगर पथरीला हो तो भी चलना तो खुद ही पड़ेगा | पर अगर कोई मार्गदर्शक साथ हो और हाथ थामे रखे , तो वह पथरीला रास्ता तय करना आसान हो जाता है | गुरु अपने शिष्य के लिए उसी मार्गदर्शक की तरह हैं | गुरु के सानिध्य में आने से शूल की चुभन भी सुई की नोक जितनी हो जाती है | जैसा शिष्य का प्रेम और निष्ठा होगी, गुरु कृपा भी उसी प्रकार से होगी |
Gurudev Keeping expectations from others is a part and parcel of every relationship. Not seeing them getting fulfilled leads to disappointments. So it's often believed "Don't have expectations, so there will be no disappointments". But how as a Human Being is it possible to not keep expectations from others? If you are keeping expectations from others , that means you are associating with those people for your personal motives only. रिश्तो में मतलब रखना बंद कर दो, तो सब कुछ साफ नजर आने लगेगा और जिंदगी बहुत सुकूनमई हो जाएगी | जो जैसा है, उसको वैसा स्वीकार लो | These are not mere words. It's the philosophy of life indeed ! If you really want to learn something in life, then learn UNCONDITIONAL LOVE. Love people for who they are rather than expecting them to become who you want them to be. How you can learn this... Try loving and feeding a street dog. He is of no use to you as such. He is not even going to protect you or your home from any kind of trouble. But feeding him selflessly would make you understand how a compassionate heart is. And a heart that is full of compassion develops affection for others without expecting materialistic things in return. Hence there will be no disappointments.
गुरुश्री गुरु और शिष्य के मध्य क्या रिश्ता है ? गुरु अपने शिष्य के जीवन में क्या भूमिका निभाते हैं ? जिस प्रकार मां हमेशा अपने बच्चे के लालन-पालन का ध्यान रखती है , भले ही बच्चा छोटा हो या बड़ा मां को उससे कोई अंतर नहीं पड़ता | गुरु का प्यार अपने शिष्य के लिए इससे भी करोड़ों गुना गहरा होता है | गुरु और शिष्य के प्रेम को पत्नीव्रता के प्रेम से भी ऊपर दर्जा दिया गया है | गुरु कुम्हार की भांति है और शिष्य माटी जैसा | कुम्हार चाक पर मिट्टी के बर्तन बनाता है | मिट्टी की कोई कीमत नहीं होती | कुम्हार उस मिट्टी पर मेहनत करके, उसको गला के, तपा के अपनी पूरी मेहनत से उसको सर्वोत्तम रूप देने की कोशिश करता है | यदि मिट्टी के घड़े में एक छोटा सा भी छेद रह जाए तो वह घड़ा किसी काम का नहीं रहता और कुम्हार की सारी मेहनत बेकार हो जाती है | कुम्हार कभी भी यह सोचकर घड़ा नहीं बनाता कि वह उसमें छेद छोड़ेगा | जिस पद पर गुरु बैठे हैं , गुरु को भी शिष्य के लिए इन सब चीजों का ध्यान भली-भांति होता है कि शिष्य मे किसी भी प्रकार का विकार ना रहे | गुरु सर्वज्ञ है | गुरु से बेहतर यह कोई नहीं जानता कि उनके शिष्य के लिए श्रेष्ठ क्या है | इस संसार में गुरु से बड़ा हितैषी कोई नहीं |